अब पांचवी कक्षा तक मातृ भाषा में होगी पढ़ाई
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नई शिक्षा नीति के अंतर्गत ही ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ का नाम बदल कर ‘शिक्षा मंत्रालय’ करने को भी मंज़ूरी दी गई है।
ECCE फ्रेमवर्क क्या है?
- ECCE का मतलब है अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन। इसके तहत बच्चे को बचपन में जिस देखभाल की आवश्यकता होती है उसे शिक्षा के साथ जोड़ा गया है।
- NCERT इसके लिए नेशनल कोर्स और एजुकेशनल स्ट्रक्चर बनाएगा। बच्चों की देखभाल और पढ़ाई पर फोकस रहेगा।
- आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और बेसिक टीचर्स को स्पेशल ट्रेनिंग दी जाएगी।
- तीन से आठ वर्ष आयु के बच्चों को दो हिस्सों में बांटा है। पहले हिस्से में यानी 3-6 वर्ष तक बच्चा ECCE में रहेगा।
- इसके बाद 8 वर्ष का होने तक वह प्राइमरी में पढ़ेगा।
नई शिक्षा नीति में 24 चैप्टर हैं :
- नई शिक्षा नीति पर कोविड-19 महामारी का भी असर हुआ है।
- ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़ा एक नया चैप्टर साल 2020 में ही जोड़ा गया है।
- 2019 के ड्राफ्ट में कुल 23 चैप्टर थे। जबकि नई शिक्षा नीति में 24 चैप्टर हैं।
- यह 24वां चैप्टर है Online and Digital Education: Ensuring Equitable Use of Technology यानी सभी के लिए तकनीक का उपयोग सुनिश्चित करना।
सात चरणों में ऑनलाइन एजुकेशन का ढांचा तैयार किया जाएगा :
- देश में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा।
- NETF, CIET, NIOS, IGNOU, IITs, NITs के जरिए ऑनलाइन एजुकेशन के पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए जाएंगे।
- SWAYAM, DIKSHA जैसे ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स को पहले से ज्यादा यूजर फ्रेंडली बनाया जाएगा।
- डिजिटल कंटेंट का एक बड़ा भंडार तैयार किया जाएगा। जिसमें नए कोर्स-वर्क, लर्निंग गेम्स आदि डेवलप किए जाएंगे।
- डिजिटल डिवाइड को देखते हुए टेलीविजन, रेडियो और कम्युनिटी रेडियो के माध्यम से भी ई-लर्निंग कंटेंट उपलब्ध कराया जाएगा।
- DIKSHA, SWAYAM और SWAYAMPRABHA जैसे ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स के जरिए वर्चुअल लैब तैयार होंगे। जिनसे ऑनलाइन ही स्टूडेंट्स प्रैक्टिकल और एक्सपेरिमेंट्स भी कर सकें।
- टीचर्स को सिखाया जाएगा कि वे किस एक ऑनलाइन एजुकेशन के लिए कंटेंट क्रिएटर बन सकते हैं।
प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित प्रावधान :महत्वपूर्ण बिंदु
- प्रारंभिक शिक्षा को बहुस्तरीय खेल और गतिविधि आधारित बनाने को प्राथमिकता दी जाएगी।
- NEP में MHRD द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on Foundational Literacy and Numeracy) की स्थापना की मांग की गई है।
- राज्य सरकारों द्वारा वर्ष 2025 तक प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा-3 तक के सभी बच्चों में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त करने हेतु इस मिशन के क्रियान्वयन की योजना तैयार की जाएगी।
- 3 वर्ष से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शैक्षिक पाठ्यक्रम का दो समूहों में विभाजन-
- 3 वर्ष से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये आँगनवाड़ी/बालवाटिका/प्री-स्कूल (Pre-School) के माध्यम से मुफ्त, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण ‘प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा’ (Early Childhood Care and Education- ECCE) की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- 6 वर्ष से 8 वर्ष तक के बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 1 और 2 में शिक्षा प्रदान की जाएगी।
- NEP-2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/ स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्यापन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है, साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।
उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान
- नई शिक्षा नीति के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया।
- NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross-Enrollment Ratio) को 26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।
- NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान
- कॉलेज की पढ़ाई छोड़ने पर स्टूडेंट का साल बर्बाद ना हो, इसके लिए भी नियम बनाएं गए हैं। अब कॉलेज में फर्स्ट ईयर तक पढ़ाई पूरी करने पर सर्टिफिकेट, सेकंड ईयर पूरा करने पर एडवांस डिप्लोमा, थर्ड ईयर करने पर डिग्री और फोर्थ ईयर पूरा होने पर बैचलर्स डिग्री के साथ रिसर्च सर्टिफिकेट दिया जाएगा।
- विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिये एक ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ (Academic Bank of Credit) दिया जाएगा, जिससे अलग-अलग संस्थानों में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके।
भारत उच्च शिक्षा आयोग के अंतर्गत:
वर्तमान में हायर एजुकेशन के लिए UGC, AICTE और NCTE जैसी रेगुलेटरी बॉडी काम करती है। लेकिन अब इन्हें खत्म कर 'हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया' (HECI) स्थापित किया जाएगा, जो चार वर्टिकल में काम करेगा।
HECI के कार्यों के प्रभावी और प्रदर्शितापूर्ण निष्पादन के लिये चार संस्थानों/निकायों का निर्धारण किया गया है-
1. विनियमन हेतु : राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (National Higher Education Regulatory Council- NHERC)
- यह टीचर एजुकेशन समेत हायर एजुकेशन की फील्ड में सामान्य और सिंगल प्वाइंट रेगुलेटर के रूप में कार्य करेगा।)
2. मानक निर्धारण : सामान्य शिक्षा परिषद (General Education Council- GEC)
- यह चौथा वर्टिकल हायर एजुकेशन प्रोग्राम के लिए अपेक्षित परिणाम प्राप्त करेगा, जिसे ग्रेजुएट एट्रिब्यूट कहा जाता है। इसके अलावा GEC नेशनल हायर एजुकेशन क्वालीफिकेशन फ्रेमवर्क (NHEQF) भी तैयार किया जाएगा
- HECI का यह तीसरा वर्टिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की फंडिंग और फाइनेंसिंग का काम करेगा।
4. प्रत्यायन : राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (National Accreditation Council- NAC)
- इसके तहत इंस्टिट्यूट का सत्यापन मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों, पब्लिक डिस्क्लोजर, सुशासन और परिणामों पर आधारित होगा।
देश में आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) के समकक्ष वैश्विक मानकों के ‘बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय’ (Multidisciplinary Education and Research Universities- MERU) की स्थापना की जाएगी।
शिक्षण व्यवस्था से संबंधित किस प्रकार के सुधार किये गए है :
- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद वर्ष 2022 तक ‘शिक्षकों के लिये राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक’ (National Professional Standards for Teachers- NPST) का विकास किया जाएगा।
- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा NCERT के परामर्श के आधार पर ‘अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा’ [National Curriculum Framework for Teacher Education-NCFTE) का विकास किया जाएगा।
- वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा।
पाठ्यक्रम(Curriculum) और मूल्यांकन(Evaluation)संबंधी प्रमुख्य बातें :
- कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी दी जाएगी।
- इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम एवं पाठ्य के अंतर्गत गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा।
- ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ ( NCERT) द्वारा ‘स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा’ (National Curricular Framework for School Education) तैयार की जाएगी।
- छात्रों के समग्र विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कक्षा-10 और कक्षा-12 की परीक्षाओं में बदलाव किये जाएंगे। इसमें भविष्य में समेस्टर या बहुविकल्पीय प्रश्न आदि जैसे सुधारों को शामिल किया जा सकता है।10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा जारी रहेगी
- ‘परख’ (PARAKH) नामक एक नए ‘राष्ट्रीय आकलन केंद्र’ (National Assessment Centre) की स्थापना की जाएगीजिससे छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिये मानक-निर्धारक निकाय के रूप में कार्य हो सके।
- ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence- AI) आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाएगा जिससे छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन तथा छात्रों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान की जा सके।
नई शिक्षा नीति प्रमुख्य बिंदु :
- स्कूलों के क्लस्टर बनेंगे; शिक्षक समेत सभी संसाधन साझा हो सकेंगे, प्रोफेशनल और क्वालिटी लेवल के लिए गठित होगी स्टेट स्कूल स्टैंडर्ड्स अथाॅरिटी
- स्कूलों के क्लस्टर बनेंगे; शिक्षक समेत सभी संसाधन साझा हो सकेंगे, प्रोफेशनल और क्वालिटी लेवल के लिए गठित होगी स्टेट स्कूल स्टैंडर्ड्स अथाॅरिटी
- नई शिक्षा नीति में GDP का 6% हिस्सा एजुकेशन सेक्टर पर खर्च किए जाने का लक्ष्य रखा गया है, जो वर्तमान में केंद्र और राज्य को मिलाकर कुल 4.43% है।
- कक्षा 9 से 12 तक के बच्चों के लिए मल्टी-डिसीप्लीनरी कोर्स होंगे। यदि बच्चे की रुचि संगीत में है, तो वह साइंस के साथ म्यूजिक ले सकेगा। केमेस्ट्री के साथ बेकरी, कुकिंग भी कर सकेगा।
- कक्षा 9-12 में प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग पर जोर होगा। इससे जब बच्चा 12वीं पास करके निकलेगा, तो उसके पास एक स्किल ऐसा होगा, जो आगे चलकर आजीविका के रूप में काम आ सकता है।
- आकाश एजुकेशनल सर्विसेस लिमिटेड के सीईओ आकाश चौधरी के मुताबिक नई व्यवस्था हुनर-आधारित शिक्षा का महत्व बढ़ाएगी। युवाओं की रोजगार क्षमता बढ़ेगी।
- स्टूडेंट्स अब कन्नड़, उड़िया और बंगाली समेत 8 क्षेत्रीय भाषाओं में भी कर सकेंगे ऑनलाइन कोर्स
- बधिर छात्रों के इस्तेमाल के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय पाठ्यक्रम सामग्री की जाएंगी विकसित
- इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई की अनिवार्यता खत्म, संस्कृत के साथ तीन भारतीय भाषाओं का होगा विकल्प
- 34 साल बाद शिक्षा नीति में हुए बदलाव में सरकार ने भाषा में 'त्रिभाषा फार्मूला' अपनाया है।
- तीसरी, पांचवीं और आठवीं कक्षा में सभी बच्चाें की परीक्षा हाेगी।
त्रि-भाषा फार्मूला क्या अर्थ है ?
- नई शिक्षा नीति में कम से कम कक्षा 5 तक बच्चों से बातचीत का माध्यम मातृभाषा/स्थानीय भाषा/ क्षेत्रीय भाषा रहेगी।
- छात्रों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को विकल्प के रूप में चुनने का अवसर मिलेगा। यह विकल्प त्रि-भाषा फॉर्मूले में भी शामिल होगा।
- पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प होंगे। कई विदेशी भाषाओं को भी माध्यमिक शिक्षा स्तर पर एक विकल्प के रूप में चुना जा सकेगा।
- भारतीय संकेत भाषा यानी साइन लैंग्वेज को मानकीकृत किया जाएगा और बधिर छात्रों के इस्तेमाल के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय पाठ्यक्रम सामग्री विकसित की जाएंगी।
SSSA (State School Standards Authority )का होगा गठन :
- यह सामाजिक, बाैद्धिक और स्वयंसेवी गतिविधियाें काे बढ़ावा देगा।
- स्कूलाें के लिए शाॅर्ट टर्म और लाॅन्ग टर्म प्लान भी तैयार करेंगे।
- राज्याें और केंद्र शासित प्रदेशाें काे स्वतंत्र स्टेट स्कूल स्टैंडर्ड्स अथाॅरिटी (एसएसएसए) गठित करनी हाेगी।
- एसएसएसए ही सुनिश्चित करेगा कि सभी स्कूल एक निश्चित स्तर तक पेशेवर(professional) और गुणवत्ता मानकाें(quality standards) का पालन करें। सरकारी और निजी स्कूलाें का मूल्यांकन एक जैसे क्राइटेरिया(same criteria) के आधार पर ही किया जाएगा।
- Private और charitable trusts के स्कूलाें काे बढ़ावा दिया जाएगा।
क्या पढ़ाई का पैटर्न अचानक ही बदल जाएगा ?
- नई शिक्षा नीति में धीरे-धीरे बदलाव हाेगा।
- 10वीं की परीक्षा का नया पैटर्न 2022-23 तक आएगा।
- 2024-25 में 12वीं का नया पैटर्न आएगा।
- प्री-प्राइमरी की शिक्षा और पहली कक्षा के लिए 3 महीने का प्रीपेरेटरी माॅड्यूल सिस्टम अगले सत्र, यानी 2021-22 से ही लागू हाे जाएगा।
- 2023-24 में 3 साल के बच्चाें काे आंगनवाड़ी में लाना सुनिश्चित होगा।
नई शिक्षा नीति लाने की जरूरत क्यों महसूस की गई?
- इससे पहले की शिक्षा नीति 1986 में बनाई गई थी। उसमें ही संशोधन किए गए थे। लंबे समय से बदले हुए परिदृश्य में नई नीति की मांग हो रही थी।
- 2005 में कुरिकुलम फ्रेमवर्क भी लागू किया गया था।
- एजुकेशन पॉलिसी एक कॉम्प्रेहेंसिव फ्रेमवर्क(comprehensive framework ) होता है जो देश में शिक्षा की दिशा तय करता है। यह पॉलिसी मोटे तौर पर दिशा बताता है और राज्य सरकारों से उम्मीद है कि वे इसे मानें । हालांकि, उनके लिए यह करना अनिवार्य नहीं है।
- ऐसे में यह पॉलिसी सीबीएसई(CBSC ) तो लागू करेगी ही, प्रत्येक राज्यों में अपने-अपने स्तर पर फैसले लिए जाएंगे।
- स्कूल शिक्षा के लिए नेशनल करिकुलर फ्रेमवर्क(NCFSE) के तौर पर स्कूल करिकुलम (एनसीएफएसई) का ओवरहॉल किया गया था। इसे नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (ACERT) करेगा।
- NCFSE के आधार पर किताबों का रिवीजन होगा।
- एनसीईआरटी ने 2014 के बाद से दो बार स्कूल की टेक्स्टबुक का रिवीजन किया है।
- बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता थी।
- शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी।
- भारतीय शिक्षण व्यवस्था की वैश्विक स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा के वैश्विक मानकों को अपनाने के लिये शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता थी।
भारतीय शिक्षा नीति का इतिहास
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968
- स्वतंत्र भारत में शिक्षा पर यह पहली नीति कोठारी आयोग (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित थी।
- माध्यमिक स्तर पर ‘त्रिभाषा सूत्र’ लागू करने का आह्वान किया गया।
- शिक्षा को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय घोषित किया गया।
- 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य और शिक्षकों का बेहतर प्रशिक्षण और योग्यता पर फोकस।
- नीति ने प्राचीन संस्कृत भाषा के शिक्षण को भी प्रोत्साहित किया, जिसे भारत की संस्कृति और विरासत का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता था।
- शिक्षा पर केन्द्रीय बजट का 6 प्रतिशत व्यय करने का लक्ष्य रखा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986
- इस नीति ने प्राथमिक स्कूलों को बेहतर बनाने के लिये "ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड" लॉन्च किया।
- इस नीति का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति समुदायों के लिये शैक्षिक अवसर की बराबरी करने पर विशेष ज़ोर देना था।
- इस नीति ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ‘ओपन यूनिवर्सिटी’ प्रणाली का विस्तार किया।
- ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित "ग्रामीण विश्वविद्यालय" मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान किया गया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संशोधन, 1992
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में संशोधन का उद्देश्य देश में व्यावसायिक और तकनीकी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिये अखिल भारतीय आधार पर एक आम प्रवेश परीक्षा आयोजित करना था।
- इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर कार्यक्रमों में प्रवेश के लिये सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (Joint Entrance Examination-JEE) और अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (All India Engineering Entrance Examination-AIEEE) तथा राज्य स्तर के संस्थानों के लिये राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (SLEEE) निर्धारित की।
- इसने प्रवेश परीक्षाओं की बहुलता के कारण छात्रों और उनके अभिभावकों पर शारीरिक, मानसिक और वित्तीय बोझ को कम करने की समस्याओं को हल किया।
नईशिक्षा नीति में ‘How to think’ पर दिया गया जोर, 21वीं सदी के भारत की फाउंडेशन तैयार करने वाली है एजुकेशन पॉलिसी 2020
- नई शिक्षा नीति का स्वरूप जड़ से जग तक,मनुज से मानवता तक, अतीत से आधुनिकता तक सभी बिंदुओं का समावेश करते हुए तय किया गया है।
- 10+2 के फॉमूले से आगे बढ़कर अब 5+3+3+4 करिकुलम का स्ट्रक्चर ग्लोबल स्टैंडर्ड की दिशा में एक कदम है।
- अभी तक जो हमारी शिक्षा व्यवस्था है, उसमें What to Think पर फोकस रहा है। जबकि इस शिक्षा नीति में How to think पर बल दिया जा रहा है।
- बच्चों के घर की बोली और स्कूल में पढ़ाई की भाषा एक ही होने से बच्चों के सीखने की गति बेहतर होती है। इसलिए 5वीं तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही पढ़ाने पर सहमति दी गई है।
- हर स्टूडेंट को अपने पैशन को फॉलो करने और अपनी सुविधा या जरूरत के हिसाब से किसी डिग्री या कोर्स को करने और छोड़ने का मौका मिलना चाहिए। इसलिए हायर एजुकेशन को स्ट्रीम्स से मुक्त कर मल्टीपल एंट्री- एग्जिट और क्रेडिट बैंक की सुविधा लाई गई।
- किसान, श्रमिकों और, मजदूरों को समझने के मकसद से ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्टूडेंट एजुकेशन और डिग्निटी ऑफ लेबर पर बहुत काम किया गया है।
- 21वीं सदी के भारत से पूरी दुनिया को बहुत अपेक्षाएं हैं। भारत का सामर्थ्य है कि वो टैलेंट और टेक्नॉलॉजी का समाधान पूरी दुनिया को दे सकता है, नई एजुकेशन पॉलिसी इस जिम्मेदारी को भी एड्रेस करती है।
- नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में डिग्निटी ऑफ टीचर्स और टीचर ट्रेनिंग का भी विशेष ध्यान रखा गया है
- सभी लोग राष्ट्रीय शिक्षा नीति के इंप्लिमेंटेशन से सीधे तौर पर जुड़े हैं, इसलिए इसमें सबकी भूमिका बहुत ज्यादा अहम है।
- एजुकेशन सिस्टम का मकसद अपनी वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को फ्यूचर रेडी करना होता है।
- नई शिक्षा नीति में हुए बदलाव को कागजों पर उतारने के बाद अब सबकी निगाहें इसके इंप्लिमेंटेशन की तरफ हैं।
- बीते सालों में एजुकेशन सिस्टम में हुए बड़े बदलावों में क्यूरियोसिटी और इमेजिनेशन को प्रमोट करने के बजाय भेड़ चाल को प्रोत्साहन मिला।
"हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का निर्माण हो, मन की शांति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैर पर खड़ा हो सके।"
........स्वामी विवेकानंद
* Reference Image and content with courtesy to sources
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