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मुस्लिम महिला अधिकार दिवस :1 अगस्त
भारत सरकार ने तीन तलाक नामक सामाजिक बुराई के खिलाफ कानून लाकर ‘लैंगिक समानता’ सुनिश्चित की है और मुस्लिम महिलाओं के संवैधानिक, मौलिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों को मज़बूत किया है।
- 18 मई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद मोदी सरकार ने एक अगस्त, 2019 को संसद में कांग्रेस, वाम दलों, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सहित तमाम कथित सेक्युलर दलों के विरोध के बावजूद तीन तलाक कुप्रथा को खत्म करने के विधेयक को कानूनी रूप दिया।
- इसी के साथ देश की मुस्लिम महिलाओं के लिए यह दिन संवैधानिक, मौलिक, लोकतांत्रिक एवं समानता के अधिकारों का दिन बन गया।
- केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने कहा कि भारत सरकार ने तीन तलाक नामक सामाजिक बुराई के खिलाफ कानून लाकर ‘लैंगिक समानता’ सुनिश्चित की है और मुस्लिम महिलाओं के संवैधानिक, मौलिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों को मज़बूत किया है।
- 18 मई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद मोदी सरकार ने एक अगस्त, 2019 को संसद में कांग्रेस, वाम दलों, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सहित तमाम कथित सेक्युलर दलों के विरोध के बावजूद तीन तलाक कुप्रथा को खत्म करने के विधेयक को कानूनी रूप दिया।
भारतीय संविधान में समानता के अधिकार को अनुच्छेद 14 से 18 में इसप्रकार से वर्णित किया गया है-
- अनुच्छेद-14: विधि के समक्ष समता
- अनुच्छेद-15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
- अनुच्छेद-16: लोक नियोजन के विषयों में अवसर की समता
- अनुच्छेद-17: अस्पृश्यता (छुआछूत) का अंत
- अनुच्छेद-18: उपाधियों का अंत
तीन तलाक नामक सामाजिक बुराई को समाप्त करने वाले देश
- मिस्र’ पहला मुस्लिम राष्ट्र था जिसने वर्ष 1929 में
- पाकिस्तान ने वर्ष 1956 और
- बांग्लादेश ने वर्ष 1972 में
क्या है तलाक ए बिदअत :
- तीन बार तलाक को तलाक ए बिदअत कहा जाता है।
- बिदअत यानी वह कार्य या प्रक्रिया जिसे इस्लाम का मूल अंग समझकर सदियों से अपनाया जा रहा है, हालांकि कुरआन और हदीस की रौशनी में यह कार्य या प्रक्रिया साबित नहीं होते।
- जब कुरआन और हदीस से कोई बात साबित नहीं होती, फिर भी उसे इस्लाम समझकर अपनाना, मानना बिदअत है।
- ट्रिपल तलाक को भी तलाक ए बिदअत कहा गया है, क्योंकि तलाक लेने और देने के अन्य इस्लामिक तरीके भी मौजूद हैं, जो वास्तव में महिलाओं के उत्थान के लिए लाए गए थे।
तलाक का इतिहास :
- इस्लाम से पहले अरब में औरतों की दशा बहुत खराब थी।
- वे गुलामों की तरह खरीदी बेची जाती थीं।
- तलाक भी कई तरह के हुआ करते थे, जिसमें महिलाओं के अधिकार न के बराबर थे। इस दयनीय स्थिति में पैगम्बर हजरत मोहम्मद सब खत्म कराकर तलाक-ए-अहसन लाए।
- तलाक-ए-अहसन तलाक का सबसे अच्छा तरीका माना गया है।
- यह तीन महीने के अंतराल में दिया जाता है।
- इसमें तीन बार तलाक बोला जाना जरूरी नहीं है।
- एक बार तलाक कह कर तीन महीने का इंतज़ार किया जाता है।
- तीन महीने के अंदर अगर-मियां बीवी एक साथ नहीं आते हैं तो तलाक हो जाएगा। इस तरीके में महिला की गरिमा बनी रहती है और वह न निभ पाने वाले शादी के बंधन से आज़ाद हो जाती है।
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