जन्म 23 जुलाई 1906 मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा (आजादनगर) गांव में हुआ था।
पिता का नाम सीताराम तिवारी
माता का नाम जगदानी देवी
वह एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल, और तीन अन्य प्रमुख पार्टी नेताओं, रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और अशफाकुल्ला खान की मृत्यु के बाद नए नाम के तहत हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का पुनर्गठन किया। HSRA(हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी) के प्रमुख के रूप में जारी किए गए पर्चे पर हस्ताक्षर करते समय उन्होंने अक्सर छद्म नाम "बलराज" का इस्तेमाल किया।
1922 में गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित करने के बाद, आजाद अधिक आक्रामक हो गए। उनकी मुलाकात एक युवा क्रांतिकारी, मन्मथ नाथ गुप्ता से हुई, जिन्होंने उन्हें राम प्रसाद बिस्मिल से मिलवाया जिन्होंने एक क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) का गठन किया था। वह तब एचएसआरए का सक्रिय सदस्य बन गए और HRA के लिए धन एकत्र करना शुरू कर दिया। अधिकांश फंड संग्रह सरकारी संपत्ति की लूट के माध्यम से किया गया था।
वे 1925 में भारत के वायसराय के रेल को उड़ाने के प्रयास में काकोरी ट्रेन रॉबरी में शामिल थे और लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए 1928 में लाहौर में जे.पी. सौन्डर्स की गोलीबारी में शामिल थे ।
आज़ाद ने कुछ समय के लिए झाँसी को अपने संगठन का केंद्र बनाया। उन्होंने झांसी से 15 किलोमीटर (9.3 मील) की दूरी पर स्थित ओरछा के जंगल का इस्तेमाल किया, शूटिंग अभ्यास के लिए एक साइट के रूप में और, एक विशेषज्ञ निशानेबाज होने के नाते, उन्होंने अपने समूह के अन्य सदस्यों को प्रशिक्षित किया।
पार्टी की ओर से धन एकत्र करने के लिए जितने भी कार्य हुए चंद्रशेखर उन सब में आगे रहे।
सांडर्स वद्ध, सेंट्रल असेंबली मैं भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वायसराय की ट्रेन बम से उड़ाने की चेष्टा सब के नेता चंद्रशेखर ही थे ।
27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के आज़ाद पार्क में आज़ाद शहीद हो गए |
वीरभद्र तिवारी (उनके पुराने साथी, जो बाद में देशद्रोही हो गए थे) ने उन्हें वहां मौजूद होने की सूचना दी थी जिसके बाद पुलिस ने उन्हें पार्क में घेर लिया। वह अपने और सुखदेव राज (सुखदेव थापर के साथ भ्रमित नहीं होने) का बचाव करने की प्रक्रिया में घायल हो गए और तीन पुलिसकर्मियों को मार डाला और अन्य को घायल कर दिया। उनके कार्यों से सुखदेव राज का बचना संभव हो गया। गोला बारूद खत्म होने के बाद भागने का कोई विकल्प नहीं बचा | उन्होंने पुलिस से घिरा होने के बाद खुद को गोली मार ली । यह कहा जाता है कि वह अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने की स्थिति में खुद को मारने के लिए एक गोली रखते थे । चंद्रशेखर आज़ाद की कोल्ट पिस्तौल इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शित है।
शव को आम जनता को बताए बिना दाह संस्कार के लिए रसूलाबाद घाट भेज दिया गया। जैसे ही यह पता चला, लोगों ने पार्क को घेर लिया जहां यह घटना हुई थी। लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ और आजाद की प्रशंसा के लिए नारे लगाए।
आजाद के मुख्य वचन:
चंद्रशेखर जी के नाम में आजाद किस प्रकार जुड़ा:
गांधीजी के असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने विदेशी सामानों का बहिष्कार किया इसी असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें पहली बार 15 वर्ष की आयु में आंदोलनकारी के रूप में पकड़ लिया गया और जब मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया |
उनका नाम पूछा गया - तो उन्होंने कहा : 'आजाद'
पूछा गया 'तुम्हारे पिता का नाम क्या है' ? उत्तर मिला - 'स्वादधीनता'
पूछा गया 'तुम्हारा घर कहां है'? उत्तर मिला - 'जेलखाना'
अल्पायु के कारण चंद्रशेखर को कारावास का दंड ना देकर उन्हें 15 कोड़े दंड दिया गया और चंद्रशेखर ने हर कोड़े पर 'भारत माता की जय', 'वंदे मातरम', 'महात्मा गांधी की जय' का उद्घोष करते रहे | बस तभी से उनका नाम चंद्रशेखर 'आजाद' पड़ गया।
पिता का नाम सीताराम तिवारी
माता का नाम जगदानी देवी
वह एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल, और तीन अन्य प्रमुख पार्टी नेताओं, रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और अशफाकुल्ला खान की मृत्यु के बाद नए नाम के तहत हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का पुनर्गठन किया। HSRA(हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी) के प्रमुख के रूप में जारी किए गए पर्चे पर हस्ताक्षर करते समय उन्होंने अक्सर छद्म नाम "बलराज" का इस्तेमाल किया।
1922 में गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित करने के बाद, आजाद अधिक आक्रामक हो गए। उनकी मुलाकात एक युवा क्रांतिकारी, मन्मथ नाथ गुप्ता से हुई, जिन्होंने उन्हें राम प्रसाद बिस्मिल से मिलवाया जिन्होंने एक क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) का गठन किया था। वह तब एचएसआरए का सक्रिय सदस्य बन गए और HRA के लिए धन एकत्र करना शुरू कर दिया। अधिकांश फंड संग्रह सरकारी संपत्ति की लूट के माध्यम से किया गया था।
वे 1925 में भारत के वायसराय के रेल को उड़ाने के प्रयास में काकोरी ट्रेन रॉबरी में शामिल थे और लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए 1928 में लाहौर में जे.पी. सौन्डर्स की गोलीबारी में शामिल थे ।
आज़ाद ने कुछ समय के लिए झाँसी को अपने संगठन का केंद्र बनाया। उन्होंने झांसी से 15 किलोमीटर (9.3 मील) की दूरी पर स्थित ओरछा के जंगल का इस्तेमाल किया, शूटिंग अभ्यास के लिए एक साइट के रूप में और, एक विशेषज्ञ निशानेबाज होने के नाते, उन्होंने अपने समूह के अन्य सदस्यों को प्रशिक्षित किया।
पार्टी की ओर से धन एकत्र करने के लिए जितने भी कार्य हुए चंद्रशेखर उन सब में आगे रहे।
सांडर्स वद्ध, सेंट्रल असेंबली मैं भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वायसराय की ट्रेन बम से उड़ाने की चेष्टा सब के नेता चंद्रशेखर ही थे ।
27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के आज़ाद पार्क में आज़ाद शहीद हो गए |
वीरभद्र तिवारी (उनके पुराने साथी, जो बाद में देशद्रोही हो गए थे) ने उन्हें वहां मौजूद होने की सूचना दी थी जिसके बाद पुलिस ने उन्हें पार्क में घेर लिया। वह अपने और सुखदेव राज (सुखदेव थापर के साथ भ्रमित नहीं होने) का बचाव करने की प्रक्रिया में घायल हो गए और तीन पुलिसकर्मियों को मार डाला और अन्य को घायल कर दिया। उनके कार्यों से सुखदेव राज का बचना संभव हो गया। गोला बारूद खत्म होने के बाद भागने का कोई विकल्प नहीं बचा | उन्होंने पुलिस से घिरा होने के बाद खुद को गोली मार ली । यह कहा जाता है कि वह अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने की स्थिति में खुद को मारने के लिए एक गोली रखते थे । चंद्रशेखर आज़ाद की कोल्ट पिस्तौल इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शित है।
शव को आम जनता को बताए बिना दाह संस्कार के लिए रसूलाबाद घाट भेज दिया गया। जैसे ही यह पता चला, लोगों ने पार्क को घेर लिया जहां यह घटना हुई थी। लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ और आजाद की प्रशंसा के लिए नारे लगाए।
आजाद के मुख्य वचन:
- 'मैं जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए शत्रु से लड़ता रहूंगा।'
- 'जिस राष्ट्र ने चरित्र खोया उसने सब कुछ खोया।'
- 'आजाद की कलाई में हथकड़ी लगाना बिल्कुल असंभव है एक बार सरकार लगा चुकी अब तो शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे लेकिन जीवित रहते पुलिस बंदी नहीं बना सकती'
- 'जब तक या बमतूल बुखारा( आजाद अपने माउजर पिस्तौल को इसी नाम से पुकारते थे) मेरे पास है, किसने मां का दूध पिया है ,जो मुझे जीवित पकड़ ले जाए।'
चंद्रशेखर जी के नाम में आजाद किस प्रकार जुड़ा:
गांधीजी के असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने विदेशी सामानों का बहिष्कार किया इसी असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें पहली बार 15 वर्ष की आयु में आंदोलनकारी के रूप में पकड़ लिया गया और जब मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया |
उनका नाम पूछा गया - तो उन्होंने कहा : 'आजाद'
पूछा गया 'तुम्हारे पिता का नाम क्या है' ? उत्तर मिला - 'स्वादधीनता'
पूछा गया 'तुम्हारा घर कहां है'? उत्तर मिला - 'जेलखाना'
अल्पायु के कारण चंद्रशेखर को कारावास का दंड ना देकर उन्हें 15 कोड़े दंड दिया गया और चंद्रशेखर ने हर कोड़े पर 'भारत माता की जय', 'वंदे मातरम', 'महात्मा गांधी की जय' का उद्घोष करते रहे | बस तभी से उनका नाम चंद्रशेखर 'आजाद' पड़ गया।
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